गुरु तेग बहादुर जी सिख धर्म के नौवें गुरु थे। वे एक महान संत, वीर योद्धा, आध्यात्मिक कवि और मानवता के सच्चे सेवक थे। उन्होंने अपने जीवन को धर्म, सच्चाई और इंसानियत की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। आज भी उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है।
जन्म और जीवन
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। वे गुरु हरगोबिंद जी और माता नानकी जी के पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम माता गुजरी जी था। उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह जी आगे चलकर सिखों के दसवें गुरु बने।
1664 ईस्वी में, गुरु तेग बहादुर जी को गुरु पद प्रदान किया गया। उन्होंने समाज को भक्ति, साहस, और सेवा का मार्ग दिखाया। 24 नवम्बर 1675 को उन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक में धर्म की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
धर्म की रक्षा में बलिदान
गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान उस समय हुआ जब मुगल शासक औरंगज़ेब हिन्दुओं को जबरन इस्लाम धर्म अपनाने पर मजबूर कर रहा था। भयभीत होकर कश्मीरी पंडितों ने गुरु जी से सहायता मांगी।
गुरु जी ने निडरता से कहा:
"यदि मेरी शहादत से लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता मिलती है, तो मुझे पीछे नहीं हटना चाहिए।"
दिल्ली बुलाकर औरंगज़ेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। अंततः उन्हें चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से शहीद कर दिया गया।
उनके साथ उनके तीन समर्पित शिष्य – भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला – भी क्रूरतापूर्वक शहीद किए गए।
शिक्षाएँ और विचार
गुरु तेग बहादुर जी ने सत्य, सेवा, भक्ति, त्याग और मानवता के सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने माया, लालच और अन्याय से दूर रहकर शांतिपूर्ण और धर्मपरायण जीवन जीने की प्रेरणा दी।
उनकी एक प्रसिद्ध वाणी है:
"जो सिर उतर जाए धर्म के लिए, वही सच्चा योद्धा है।"
उनकी स्मृति में पवित्र स्थल
गुरु जी की याद में कई पवित्र गुरुद्वारे बनाए गए हैं:
गुरुद्वारा शीश गंज साहिब, दिल्ली – जहाँ उनका बलिदान हुआ
गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब, दिल्ली – जहाँ उनका शरीर संस्कारित किया गया
गुरुद्वारा तेज बहादुर साहिब, पंजाब – जो उनकी स्मृति में निर्मित है
निष्कर्ष
गुरु तेग बहादुर जी केवल सिखों के ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता के गुरु हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि धर्म और सच्चाई की रक्षा के लिए किसी भी बलिदान से पीछे नहीं हटना चाहिए।
उनकी शहादत आज भी हमें प्रेरित करती है कि सत्य के मार्ग पर चलना ही सच्चा धर्म है। इसी कारण उन्हें श्रद्धापूर्वक “हिंद की चादर” कहा जाता है — जो भारत की अस्मिता और धर्म की ढाल बने।